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अभी भी / चन्द्र
Kavita Kosh से
अभी भी लिखने को बहुत कुछ बाक़ी है दुनिया में !
अभी भी जीने को बहुत जीवन बचा हुआ है
अभी भी मैं प्रेम करता हूँ तुमसे, ओ प्रिया !
मेरी प्रिया मेहनत ! दिलो-जान की मालिक मेरी मेहनत !
अभी भी मेहनत के प्रति प्रेम समय के फ्रेम में कसा हुआ है
अभी भी मेरा पेट भूखा है
इतने श्रम के आँच में जलकर अंजुरी भर राख बनने के
बाद भी
अभी भी मेरा होंठ सूखा है
इतने पसीने का पानी पीने के बाद भी
अभी भी मेरी कृशकाय आत्मा की मिट्टी
जिजीविषा की
प्रचण्ड अग्नि में धधक रही है
अभी भी जीवन है अशेष
फूलों की तरह चढ़ जाने के लिए
खेती के वेदी पर !!