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अभी मैंने तुझे देखा कहाँ है / सुरेश सलिल
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अभी मैंने तुझे देखा कहाँ है
जो पाए देख वो शाहे-जहाँ है
खुदी के ज़ोम<ref>घमण्ड</ref> में कुल उम्र बीती
न पाया जान तू इक इम्तिहांँ है
कि जब ऐवान<ref>भवन</ref> सारे छान मारे
हुआ एहसास तू तो लामकाँ<ref>बेघर</ref> है
नशा टूटा तो पाया खुद में मैंने
मेरा माथा ही तेरा आस्ताँ<ref>दहलीज़</ref> है
बयाँ करने की क़ुव्वत क़िस्में होगी
तु ही तो दर्द, तू ही दास्ताँ है
शब्दार्थ
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