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अभी विलम्ब है / हरिवंशराय बच्चन
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क़दम कलुष निशीथ के उखड़ चुके,
शिविर नखत समूह के उजड़ चुके,
पुरा तिमिर दुरा चला दुरित वदन,
नव प्रकाश में अभी विलंब है।
ढले न गीत में नवल विहंग स्वर,
चले न स्वप्न ही नवीन पंख पर,
न खोल फूल ही सके नए नयन,
युग प्रभात में अभी विलंब है।
विदेश-आधिपत्य देश से हटा,
कलंक भाल पर लगा हुआ कटा,
स्वराज की नहीं छिपी हुई छटा,
मगर सुराज में अभी विलंब है।