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अमृत (गुड़ीच) / अन्योक्तिका / सुरेन्द्र झा ‘सुमन’
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डाँटे - पाते टा, परक सहयोगहिँ चतरैछ
दुखित क दुख हरइत गुड़िच अमृता जग कहबैछ।।29।।
चम्पा - कनक बरनि धनि चंपिका उद्यान क शृंगार
कारी खटखट ष्ज्ञट्पद क उचित कयल परिहार।।40।।
वेल-वेली - बेल कतय, बेली कतय? वन उद्यान सूदूर
फूल एक, फल दय अपर, शिव सङ संगति पूर।।41।।
आक-धथूर - महादेव औढर, चढ़ओ, हुनिसिर आक-धथूर
किन्तु न किन्नहु छुबि सकत विधि हरि चरण क धूर।।42।।
तमाकू - ने फूल - फूल, ने स्वाद-रस, केबल तेजी प्राप्त
सुँघय, चुसय, फाँकय, पिबय, जगत तमाकू व्याप्त।।43।।