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अम्बेडकर / कर्मानंद आर्य
Kavita Kosh से
इससे पहले न धरती थी न मिट्टी
न कोई कला थी न कलाकार
न नफरत थी न प्रेम
फिर तुमने मिट्टी को छुआ
कला पैदा हुई
कलाकार पैदा हुआ
प्रेम पैदा हुआ
तुमने एक मूरत गढ़ दी
एक मूरत पैदा हुई
रंग पैदा हुआ
जो अभी तक था रंगहीन
वर्ण पैदा हुआ
जो अभी तक था वर्णहीन
यह निश्चित है
तुम अपने समय को समझ गए थे
तुम्हें पता था
आने वाला समय तुम्हारा है
धरती में, मिट्टी में, कला में
तुमने कैसा अमर प्राण डाला था
मेरे कलावंत