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अम्मा / शिव रावल
Kavita Kosh से
एक दिन मुझे बहुत याद आई अम्मा
घड़े के पानी में झाँका तो नजर आई अम्मा
जो स्वेटर की तरह बचाती थी मुझे
जिंदगी की सर्द हवाओं से
वो मेरे मामा की माँ जाई अम्मा
मेरी हल्की-सी नींद पर उसकी आँखें खुल जाती थी
इतनी कच्ची नींद भला कहाँ से पाई अम्मा
मेरे मन के अंकुर को अपने लाड़ों से सीँचा
रातें देतीं हैं आज लोरिओं की दुहाई अम्मा
एक दिन मुझे बहुत याद आई अम्मा