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अम्मा मेरी / संजय पंकज
Kavita Kosh से
जल्दी से तुम आना कहकर
उमड़े भाव दबाती है!
भोली-भाली अम्मा मेरी
मुझपर जान लुटाती है!
चहल पहल में जाने कैसे
हर दिन मैं खो जाता हूँ
माँ के हँसते दृग में आँसू
अनजाने बो जाता हूँ
धीरे से धरकर धीरज वह
रोज मुझे समझाती है!
अच्छी सच्ची अम्मा मेरी
दिल उलझे सुलझाती है!
अंबर की जुल्मी आफत को
उसको सहना पड़ता है
धरती है आधार सभी की
माँ को कहना पड़ता है
आने जाने मिलने जुलने
वालों को बतलाती है!
सीधी साधी अम्मा मेरी
अपना भाव छुपाती है!
कब सोती कब जगती अम्मा
पता नहीं चल पाता है
उसके हिस्से का सचमुच क्या
जीवन में पल आता है
सोते जगते किसका-किसका
वह तो ध्यान लगाती है!
भोली भाली अम्मा मेरी
मुझ पर जान लुटाती है!