भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अरण्यकांड पद 11 से 15 तक/पृष्ठ 4

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

(14)
नीके कै जानत राम हियो हौं |
प्रनतपाल, सेवक-कृपालु-चित, पितु पटतरहि दियो हौं ||

त्रिजगजोनि-गत गीध, जनम भरि खाइ कुजन्तु जियो हौं |
महाराज सुकृती-समाज सब-ऊपर आजु कियो हौं ||

श्रवन बचन, मुख नाम, रुप चख, राम उछङ्ग लियो हौं |
तुलसी मो समान बड़भागी को कहि सकै बियो हौं ||