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अर्गला / सुधीर सक्सेना
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आर्तनाद करती हैं
तो करें
दसों दिशाएँ
समुद्र खलभलाता है
तो खलभलाए
उगले मनों झाग
लाल भभूका होते हों तो
हो जाएँ मरुदगण
बला से
आज
बस आज ही
हमें तोड़नी होगी
सदियों की अर्गला
कि काल भी नहीं जानता
कल का ठिकाना