अर्जुन / कांचीनाथ झा ‘किरण’
शास्त्र ज्ञान, सामर्थ्य
सहनशीलता, संयम
सत्यनिष्ठता अनुशासन केर प्रतिमान
भारतवर्षक गरिमामय इतिहासक चूड़ामणि!
हे अर्जुन !
देखि अहाँक चरित्र-विचित्र
विस्मित छी भ' जाइत!
अक्षौहिणी अठारह सेनाक मध्य
क्यो नहि रहए अहाँक समान
शस्त्र शक्ति कौशलमे।
कते परिश्रम करए पड़ल छल होएत
एहन निपुणता केर अर्जनमे?
अद्भुत लक्ष्यबेध क' अर्जल
द्रुपद महाराजक कन्या सुकुमारी सुन्दरीकेँ
तुच्छवस्तु सन भैयारीमे लेलहुँ बाँटि
माइक बात पर।
के अछि दोसर भेल अहाँक समान
मातृदेव वास्तविक अर्थमे?
सौन्दर्यक उपमान उर्वशी
इन्द्रक विलासमय महलक भीतर
मदन विह्वला एकसरि दुपहर रजनीमे
डोला सकल नहि चित्त अहाँक!
पण्डित सबहक
अनुभाव विभाव संचारिभाव
कानि कलपि मरि गेल
अहाँक संयमी मनक निकटमे।
सुनितहि गोरक्षाक गोहारि
संकल्पक पालन लग्न अहाँक मन
बिसरि गेल सुधि संसारक
शस्त्र मात्र छल कएने आक्रान्त अहाँक ध्यानकेँ
तैं चलि गेलहुँ जेठ-युधिष्ठिर केर शयन कक्षमे
भ' गेल व्यवस्था केर उल्लंघन
तैं स्वंय ग्रहण क' लेलहुँ दण्ड
बारह वर्षक देशनिकाल।
अनुशासन केर एहन
परिपालन, नहि भेटि सकल अछि अनतए
मुदा कुरुक्षेत्रमे रूप अहाँक
छी पबैत
ज्ञान विवेकविहीन, यंत्र समान लड़ैत
भातिज, भाइ, मामा, बहिनोइ
गुरु, पितामह
सबहक करैत खून
नरहत्या केर संख्यासँ
करैत अपन प्रतिष्ठा केर संस्थापन!
ठूठमुठ अपने पाँचो भाइ
टा रहल छलहुँ बाँचल।
ने क्यो दूर्वाक्षत देनिहार
ने क्यो जय जयकार
करबैया रहि गेल !
पुत्रक मरणें व्याकुलमना सुभद्रा पांचाली
विधवा पुत्रवधू उत्तराक संग मिलि
कोन रागमे गओने होएती गीत
चुमौन कालमे?
जाहि कौशलें पातालक जल
भीष्मक हेतु निकालल
यदि करितहुँ उपयोग तकर
शान्त मने, तँ की नहि भ' जाइत
अइ देशक मरुभूमि
शस्यें हरियर नयन मनोहर?
अहाँक महत्वक परिचायक
अछि आइ
अन्धाधुन्ध नरहत्या केर
गाथा मात्र किने?