भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अर्थ / हेमन्त जोशी
Kavita Kosh से
जब गेंहूँ सा पिसता हो आदमी
मौसम की बाते हैं बेमानी
धुँए सा उठ रहा हो चिमनी से
जब हर मज़दूर
तब कोई गीत न गाओ
नए बिम्बों में
पुराने अर्थ खोज रहे हैं हम
लगातार
और नया अर्थ
छुपा हुआ है अब तक
वहीं पसीने की गंध में