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अर्द्धरात्रि में वक्रमुख नायक / सुधीर सक्सेना

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अर्द्धरात्रि है ये
अर्द्धरात्रि में विचरते हैं वक्रमुख नायक
भय के आयुधों से लैस

उनके पास घुट्टियाँ हैं, क्वाथ हैं,
आसव हैं, अवलेह हैं,
उनके पास अदृश्य अर्गलाएँ हैं,
निःशब्द और निष्प्राण करने की युक्तियाँ हैं,
उनके पास मुखौटे हैं, आधुनिक रथ हैं,
पताकाएँ हैं,

उनके लिए असहमति सबसे बड़ा आघात है,
उनके पास यन्त्र हैं, मन्त्र हैं, मँजे हुए टीकाकार हैं,
वे जीवितों को पाषाण में बदलने की कला में निष्णात हैं

अन्धेरे की आराधना करते हैं वे
उजाले से भयभीत उनके वास्ते
अपने अमानुषिक कौशल को माँजने की
घड़ी है अर्द्धरात्रि