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अर्पित / रघुवीर सहाय

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गमले में उगा नन्हीं-नन्हीं पत्तियों का
हरा सजग बिरुवा मुझे शान्ति देता है ।
तुम्हें क्या देती है तुम्हारी सेनापतियों, सैनिकों युद्धबन्दियों की पाँति ?

तुम जिस जीवन में जुते हो, अनुयायियों,
उसी में मैं भी अर्पित हूँ—
अपने कविधर्म से अपनी ही भाँति ।