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अलग / गोबिन्द प्रसाद
Kavita Kosh से
वहाँ दूर :
आसमान को छूते हुए
पेड़ जहाँ मिलते हैं
सड़क जो दिखाई दे रही
बहती हुई नदी
की
पतली धार-सी
और यहाँ :
क़रीब हम खड़े हैं
नि:शब्दम्
शब्दों के परस से
स्मृति की ओट में
………अलक्षित