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अलविदा / महेन्द्र भटनागर

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प्रारब्ध के मारे हुए

हम,

ज़िन्दगी के खेल में

हारे हुए

हम,


हाय !

अपनों से सताए,

हृदय पर चोट खाए,

सिर झुकाए

मौन

जाते हैं सदा को —


कभी भी

याद मत करना,

आज के दिन भी

सुनो,

स्मृति-दीप मत रखना !