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अलाव जलाओ / दुःख पतंग / रंजना जायसवाल
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इस बेबस ठंड से
काँप रहे लोगों
उठो
अलाव जलाओ
जमा पड़ा है
गोयठों और सूखी गठीली लकड़ियों का ढेर
यह प्रेमचन्द के "दुक्खी" का नहीं
तुम्हारा समय है
यह समय गाँठ चीरते हुए
मर जाने का नहीं
आग के हवाले करना है
अब इन गाँठों को
गर्माहट के लिए यही अब बचा हुआ
जरूरी उपाय है
पुरानी,दरकी इमारतों को खोद डालो
गिरा दो
ऐठ भरी इन शहतीरों को
माचिस लाओ
अलाव जलाओ।