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अवधान / महेन्द्र भटनागर
Kavita Kosh से
कश-म-कश की ज़िन्दगी में
आदमी को चाहिए
कुछ क्षण अकेलापन !
कर सके
गुज़रे दिनों का आकलन !
किसका सही था आचरण,
कौन कितना था जरूरी
या कि किसने की तुम्हारी चाह पूरी,
प्यार किसका पा सके,
किसने किया वंचित कपट से
की उपेक्षा
और झुलसाया
घृणा-भरती लपट से !
जानना यदि सत्य जीवन का
तथ्य जीवन का
अकेलापन बताएगा तुम्हें,
सार्थक जिलाएगा तुम्हें !
वरदान —
सूनापन अकेलापन !
किसी को मत पुकारो,
पा इसे
मन में न हारो !
रे अकेलापन महत् वरदान है,
अवधान है !