अवेर्नो / लुईज़ा ग्लुक / श्रीविलास सिंह
अवेर्नो एक झील का नाम था, जो इटली में नेपल्स नगर से दस किलोमीटर दूर क्रेटर से बनी हुई थी। यह झील बेहद ज़हरीली थी। उससे उठने वाली ज़हरीली गैसों के कारण कोई भी पक्षी उसे उड़कर पार नहीं कर पाता था। रोमवासी उसे अधोलोक (अण्डर-वर्ल्ड) का प्रवेश द्वार मानते थे।
1.
तुम मरते हो तब जब मर जाती है तुम्हारी आत्मा ।
अन्यथा तुम रहते हो जीवित ।
हो सकता है तुम न कर पाओ इसका सदुपयोग, किन्तु यह चलती रहती है —
कुछ ऐसे जिसके बारे में नहीं है तुम्हारे पास कोई विकल्प ।
जब मैंने बताया यह अपने बच्चों को
उन्होंने नहीं दिया बिलकुल ध्यान ।
वे सोचते हैं कि बूढ़े लोग —
यही करते हैं हमेशा;
बतियाते हैं उन चीज़ों के बारे में जिन्हे देख नहीं सकता कोई
छुपाने की ख़ातिर मस्तिष्क की उन सारी कोशिकाओं को
जिन्हें वे खो रहे होते हैं ।
वे आँख मारते है एक दूसरे को;
सुनो बुढ़ऊ को बतियाते हुए आत्मा के बारे में
क्योंकि वे अब याद नहीं रख सकते 'कुर्सी' के लिए शब्द ।
बहुत दुखदायी है अकेले होना ।
मेरा मतलब नहीं है अकेले जीने से —
अकेले होना, जहाँ कोई सुनता नहीं तुम्हारी बात ।
मुझे याद है 'कुर्सी' के लिए प्रयुक्त होने वाला शब्द,
मैं कहना चाहती हूँ — मुझे, बस, नहीं है अब कोई रूचि उसमें ।
मैं जागती हूँ सोचते हुए
कि तुम्हे करनी है तैयारी ।
जल्दी ही जवाब दे देगी आत्मा —
और दुनिया भर की कुर्सियाँ नहीं कर पाएँगी तुम्हारी मदद ।
मैं जानती हूँ क्या कहते हैं वे जब मैं होती हूँ कमरे से बाहर,
क्या मुझे किसी से सलाह लेनी चाहिए, क्या मुझे लेनी चाहिए
अवसाद की नई दवाओं में से कोई एक ।
मैं सुन सकती हूँ उनकी फुसफुसाहटें, योजना बनाते कि कैसे बाँटी जाएगी इसकी लागत ।
और मैं चाहती हूँ चीख़ना ज़ोर से
तुम, तुम सभी जी रहे हो एक स्वप्न में ।
वे सोचते हैं, बहुत ख़राब है मुझे यों क्षय होते देखना ।
बहुत ख़राब है कि वे बच जाते हैं आजकल बिना यह भाषण सुने
जैसेकि इस नई सूचना पर मुझे हो कोई अधिकार ।
ठीक, उन्हें भी है यही अधिकार।
वे जी रहे हैं एक स्वप्न में, और मैं तैयारी कर रही हूँ
भूत हो जाने की। मैं चाहती हूँ चिल्लाना
छँट चुका है कुहासा —
यह है एक नए जीवन की भाँति :
तुम्हारा कुछ भी नहीं है दाँव पर परिणाम के लिए;
तुम जानती हो परिणाम ।
सोचो इसके बारे में, एक कुर्सी में बैठे हुए साठ वर्ष। और अब मरणधर्मा आत्मा
चाहती है इतने खुले, इतने निर्भीक रूप से —
उठाने को पर्दा ।
देखने को कि तुम किसे कह रही हो अलविदा ।
2.
मैं नहीं गई वापस लम्बे समय से ।
जब मैंने फिर से देखा खेत को, बीत चुकी थी शरद ऋतु
यहाँ, यह समाप्त हो जाती है लगभग शुरुआत के पूर्व ही —
बूढ़े लोगों के पास नहीं हैं ग्रीष्म ऋतु के कपड़े तक।
खेत ढक गए हैं बर्फ़ से, सफ़ाई से ।
क्या हुआ था यहाँ नहीं शेष हैं उसके एक भी निशान
तुम नहीं जानते थे कि किसान कर भी पाया था रोपाई या नहीं ।
हो सकता है वह चला गया हो छोड़छाड़ कर सब कहीं और ।
पुलिस नहीं पकड़ पाई थी लड़की को ।
उन्होंने बताया था कुछ समय बाद, वह चली गई थी किसी और देश ।
वहाँ, जहाँ नहीं है उनका इलाक़ा ।
इस तरह की तबाही
छोड़ती नहीं कोई निशान धरती पर।
और लोग पसन्द करते हैं यह बात — वे सोचते हैं इससे मिलता है
उन्हें एक नई शुरुआत का अवसर ।
मैं खड़ी रही देर तक, ताकती शून्य में ।
कुछ समय बाद, मैंने ध्यान दिया कि हो गया था कितना अन्धेरा, कितनी ठण्ड ।
एक लम्बा समय — मुझे नहीं अन्दाज़ कितना ।
एक बार जब धरती ले लेती है निर्णय न सहेजने को कोई स्मृति
समय एक प्रकार से हो जाता है अर्थहीन ।
किन्तु मेरे बच्चों के लिए नहीं । वे पड़े हैं मेरे पीछे
बनाने को एक वसीयत ; वे हैं चिन्तित कि सरकार
हड़प लेगी सब कुछ ।
उन्हें आना चाहिए कभी मेरे साथ
देखने इस खेत को जो ढका है बर्फ़ की चादर से ।
सब कुछ लिखा हुआ है वहाँ ।
कुछ नहीं: मेरे पास कुछ भी नहीं उन्हें देने को ।
यह है प्रथम भाग ।
दूसरा है : मैं नहीं चाहती जलाया जाना ।
3.
एक ओर भटकती है आत्मा ।
दूसरी ओर मानव जाति जी रही है भयग्रस्त ।
इन के मध्य है गह्वर विलुप्ति का ।
कुछ युवा लड़कियों ने पूछा मुझसे
क्या वे रहेंगी सुरक्षित अवेर्नो के निकट —
वे हैं शीतग्रस्त, जाना चाहती हैं थोड़ी देर को दक्षिण की ओर,
और एक ने कहा, मज़ाक की तरह, पर ज़्यादा दक्षिण नहीं —
मैंने कहा, और जगहों की तरह ही है सुरक्षित,
इससे वे हो गईं प्रसन्न।
इसका अर्थ है कि नहीं है कुछ भी सुरक्षित ।
तुम चढ़ते हो एक ट्रेन पर, तुम हो जाते हो विलुप्त ।
तुम लिखते हो खिड़की पर अपना नाम, तुम हो जाते हो विलुप्त ।
इस तरह की जगहें हैं हर कहीं,
जगहें जहाँ तुम प्रवेश करती हो युवा लड़की की भाँति
जहाँ से तुम कभी वापस नहीं आती ।
जैसे कि खेत, वही जो जल गया ।
तत्पश्चात, चली गई थी लड़की ।
हो सकता है रहा ही न हो उसका अस्तित्व,
नहीं है हमारे पास साक्ष्य किसी बात के ।
हम, बस, इतना जानते है कि :
खेत जल गया था ।
पर हमने उसे देखा था ।
इसलिए हमें विश्वास करना होगा लड़की में,
उसमें, जो कुछ किया उसने । अन्यथा
ये वही शक्तियाँ हैं जिन्हे नहीं समझ पाते हम
पृथ्वी पर शासन करतीं ।
लड़कियाँ ख़ुश हैं सोचती हुई अपनी छुट्टी के बारे में ।
मत पकड़ो ट्रेन, मैं कहती हूँ ।
उन्होंने कुहरे में लिखे अपने नाम ट्रेन की खिड़की पर ।
मैं कहना चाहती हूँ तुम सब हो अच्छी लड़कियाँ,
कोशिश करती हुई छोड़ जाना अपना नाम अपने पीछे ।
4.
हमने बिता दिया पूरा दिन
द्वीपसमूह में नौकायन करते
नन्हें द्वीप जो हिस्से थे
प्रायद्वीप के
जब तक कि वे अलग नहीं हो गए टूटकर
टुकड़ों में जिन्हें तुम देखते हो आज
तैरते उत्तरी समुद्र के पानी में ।
वे मुझे लगे सुरक्षित
मैंने सोचा इसलिए कोई नहीं रह सकता वहाँ ।
बाद में हम बैठे रहे किचेन में
देखते साँझ की शुरुआत और फिर हिमपात होते ।
पहले एक फिर दूसरा ।
हम हो गए मौन, मन्त्र-मुग्ध हिम से
जैसे हो एक प्रकार की अशान्ति
जो पहले छिपी हुई थी और
अब हो रही है प्रत्यक्ष,
जैसे कोई चीज़ रात्रि के भीतर से
अब हो गई हो अनावृत —
अपने मौन में हम पूछ रहे थे
वही सवाल मित्र जो विश्वास करते हैं एक दूजे में
पूछते हुए बड़ी थकान में,
हर एक आशान्वित कि दूसरा जानता होगा अधिक
और जब नहीं होता ऐसा, आशा करता कि
उनकी सामूहिक समझ हो जाएगी बराबर अन्तर्दृष्टि के ।
क्या है कोई लाभ किसी पर ज़बरदस्ती थोपना
यह वास्तविकता कि मर जाना चाहिए उसे ?
क्या सम्भव है चूक जाना किसी का अपने जीवन का अवसर ?
उस तरह के प्रश्न ।
हिमपात तेज़ था । काली रात
रूपान्तरित हो गई व्यस्त श्वेत हवा में ।
कोई चीज़ जो हमने नहीं देखी थी, हुई प्रकट ।
केवल अर्थ नहीं किया गया था प्रकट ।
5.
पहली शीतऋतु के पश्चात्, फिर से होने लगी अभिवृद्धि खेत में ।
लेकिन अब न थे व्यवस्थित कूड़।
गेहूँ की गन्ध थी शेष, एक तरह की अनिश्चित महक
सम्मिश्रित बहुत तरह की घास-फूस में, जिनके
नहीं खोजे गए मनुष्य के लिए कोई उपयोग अब तक ।
यह उलझनपूर्ण था — जानता नहीं था कोई भी
कि कहाँ चला गया किसान ।
कुछ लोग सोचते थे की मर गया वह ।
किसी ने कहा कि उसकी एक बेटी थी न्यूजीलैण्ड में
और वह वहीँ चला गया देखभाल करने
नाती नातिनों की, गेहूँ की बजाय ।
पर जैसा कि देखने में आया, नहीं है प्रकृति हम जैसी
इसके पास नहीं होता भण्डार गृह-स्मृतियों का ।
खेत नहीं हुआ भयाक्रान्त माचिस से,
युवा लड़कियों से । यह नहीं याद रखता
कूड़ों को भी । यह मार दिया जाता है, जला दिया जाता है यह,
और एक वर्ष के पश्चात् जीवन्त हो जाता है यह फिर से
मानो घटा ही न हो कुछ असामान्य ।
किसान तकता है खिड़की के बाहर ।
हो सकता न्यूजीलैण्ड में, हो सकता है कहीं और ।
और वह सोचता है : मेरा जीवन हो गया पूरा ।
उसके जीवन ने अभिव्यक्त किया स्वयं को खेत में;
वह अब नहीं करता विश्वास बनाने में कोई चीज़
मिट्टी से । वह सोचता है मिट्टी ने
कर लिया था मुझे अपने वश में ।
उसे स्मरण है वह दिन जब जला था खेत
नहीं, वह सोचता है, दुर्घटनावश नहीं ।
उसके भीतर की गहराई से किसी चीज़ ने कहा : मैं जी सकता हूँ इसके साथ
मैं लड़ सकता हूँ इससे कुछ समय के पश्चात ।
वह दुखद क्षण था शीत-ऋतु का जब मिटा दिया गया उसका काम,
जब उसने समझा कि मिट्टी
जानती नहीं शोक मानना, इसकी जगह वह हो जाएगी परिवर्तित ।
और फिर बना रहेगा उसका अस्तित्व बिना उसके ही ।
अँग्रेज़ी से अनुवाद : श्रीविलास सिंह
और लीजिए, अब पढ़िए अँग्रेज़ी में मूल कविता
Louise Glück
Averno
1.
You die when your spirit dies.
Otherwise, you live.
You may not do a good job of it, but you go on —
something you have no choice about.
When I tell this to my children
they pay no attention.
The old people, they think —
this is what they always do:
talk about things no one can see
to cover up all the brain cells they’re losing.
They wink at each other;
listen to the old one, talking about the spirit
because he can’t remember anymore the word for chair.
It is terrible to be alone.
I don’t mean to live alone —
to be alone, where no one hears you.
I remember the word for chair.
I want to say — I’m just not interested anymore.
I wake up thinking
you have to prepare.
Soon the spirit will give up —
all the chairs in the world won’t help you.
I know what they say when I’m out of the room.
Should I be seeing someone, should I be taking
one of the new drugs for depression.
I can hear them, in whispers, planning how to divide the cost.
And I want to scream out
you’re all of you living in a dream.
Bad enough, they think, to watch me fall apart.
Bad enough without this lecturing they get these days
as though I had any right to this new information.
Well, they have the same right.
They’re living in a dream, and I’m preparing
to be a ghost. I want to shout out
the mist has cleared —
It’s like some new life:
you have no stake in the outcome;
you know the outcome.
Think of it: sixty years sitting in chairs. And now the mortal spirit
seeking so openly, so fearlessly —
To raise the veil.
To see what you’re saying goodbye to.
2.
I didn’t go back for a long time.
When I saw the field again, autumn was finished.
Here, it finishes almost before it starts —
the old people don’t even own summer clothing.
The field was covered with snow, immaculate.
There wasn’t a sign of what happened here.
You didn’t know whether the farmer
had replanted or not.
Maybe he gave up and moved away.
The police didn’t catch the girl.
After awhile they said she moved to some other country,
one where they don’t have fields.
A disaster like this
leaves no mark on the earth.
And people like that — they think it gives them
a fresh start.
I stood a long time, staring at nothing.
After a bit, I noticed how dark it was, how cold.
A long time — I have no idea how long.
Once the earth decides to have no memory
time seems in a way meaningless.
But not to my children. They’re after me
to make a will; they’re worried the government
will take everything.
They should come with me sometime
to look at this field under the cover of snow.
The whole thing is written out there.
Nothing: I have nothing to give them.
That’s the first.
The second is: I don’t want to be burned.
3.
On one side, the soul wanders.
On the other, human beings living in fear.
In between, the pit of disappearance.
Some young girls ask me
if they’ll be safe near Averno —
they’re cold, they want to go south a little while.
And one says, like a joke, but not too far south —
I say, as safe as anywhere,
which makes them happy.
What it means is nothing is safe.
You get on a train, you disappear.
You write your name on the window, you disappear.
There are places like this everywhere,
places you enter as a young girl
from which you never return.
Like the field, the one that burned.
Afterward, the girl was gone.
Maybe she didn’t exist,
we have no proof either way.
All we know is:
the field burned.
But we saw that.
So we have to believe in the girl,
in what she did. Otherwise
it’s just forces we don’t understand
ruling the earth.
The girls are happy, thinking of their vacation.
Don’t take a train, I say.
They write their names in mist on a train window.
I want to say, you’re good girls,
trying to leave your names behind.
4.
We spent the whole day
sailing the archipelago,
the tiny islands that were
part of the penisula
until they’d broken off
into the fragments you see now
floating in the northern sea water.
They seemed safe to me,
I think because no one can live there.
Later we sat in the kitchen
watching the evening start and then the snow.
First one, then the other.
We grew silent, hypnotized by the snow
as though a kind of tubulence
that had been hidden before
was becoming visible,
something within the night
exposed now —
In our silence, we were asking
those questions friends who trust each other
ask out of great fatigue,
each one hoping the other knows more
and when this isn’t so, hoping
their shared impressions will amount to insight.
Is there any benefit in forcing upon oneself
the realization that one must die?
Is it possible to miss the opportunity of one’s life?
Questions like that.
The snow was heavy. The black night
transformed into busy white air.
Something we hadn’t seen revealed.
Only the meaning wasn’t revealed.
5.
After the first winter, the field began to grow again.
But there were no more orderly furrows.
The smell of the wheat persisted, a kind of random aroma
intermixed with various weeds, for which
no human use has been as yet devised.
It was puzzling — no one knew
where the farmer had gone.
Some people thought he died.
Someone said he had a daughter in New Zealand,
that he went there to raise
grandchildren instead of wheat.
Nature, it turns out, isn’t like us;
it doesn’t have a warehouse of memory.
The field doesn’t become afraid of matches,
of young girls. It doesn’t remember
furrows either. It gets killed off, it gets burned,
and a year later it’s alive again
as though nothing unusual has occured.
The farmer stares out the window.
Maybe in New Zealand, maybe somewhere else.
And he thinks: my life is over.
His life expressed itself in that field;
he doesn’t believe anymore in making anything
out of earth. The earth, he thinks,
has overpowered me.
He remembers the day the field burned,
not, he thinks, by accident.
Something deep within him said: I can live with this,
I can fight it after awhile.
The terrible moment was the spring after his work was erased,
when he understood that the earth
didn’t know how to mourn, that it would change instead.
And then go on existing without him.