भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अव्यक्त / जया आनंद
Kavita Kosh से
जो कह दिया
सो बह गया
जो लिख दिया
सो रह गया
पर जो न लिखा
न कहा
अव्यक्त ही रहा
मेरी दृष्टि में
वह अमूल्य है
या एक सुरभित फूल है
जिसकी सुरभि को
देखा नहीं जा सकता
सिर्फ महसूस किया जा सकता है
या है एक अनहद नाद
जो श्रवण से है परे
किंतु उसमें भी है एक आवाज़
या है एक शून्य
जो समेटे है सारा ब्रह्मांड
या है एक दीप जाज्वल्यमान
जो स्वयं जलकर जीतता है तम
जिसके व्यक्त प्रकाश में
अव्यक्त, अतुलित,
अक्षत तप है अनुपम
वह अव्यक्त मेरे लिए
सौम्य है, सुंदर है
और है सर्वोत्तम!