भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अश्क में भी हँसी है-2 / वर्तिका नन्दा
Kavita Kosh से
पानी में जिस दिन किश्ती चली थी
तुम तब साथ थे
तब डूबते-डूबते भी लगा था
पानी क्या बिगाड़ लेगा