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अष्टावक्र / उज्ज्वल भट्टाचार्य

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दुनिया की नज़रों में झाँकने के बाद
उसे पता चला
कि वह वक्र है।
उसने चारों ओर नज़र दौड़ाई
दुनिया उसे ख़ूबसूरत लगी।
उसने कहा :
हाँ, मुझे यह चाहिए।
फिर उसने अपने जिस्म की ओर देखा।
उसने कहा :
यह मेरा जिस्म है।
आख़िरकार वह अपने अन्दर झाँकने लगा।
अन्दर से बदलने लगा।
अब उसे फ़ख़्र है,
अन्दर हो या बाहर
वह अष्टावक्र है।