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असंख्य तारें / नवीन दवे मनावत
Kavita Kosh से
आसमान में
असंख्य तारों को देखकर
मुझे यह लगा कि ये
कितने समन्वय और सुलह
से एकतार है
शायद उनके द्वारा
नहीं पढी गई है
टूटन, रूठन, झूठन की बातें
या नहीं रहा परिसंवाद
ईर्ष्या-द्वेष के बीच,
शायद!
नहीं रहा होगा
तम को बिखरने का
प्रकाश समूह का समन्वय
मैं सोचता हूँ
न तो दीवार है ऐसी
उनके मध्य।
जो अक्सर धरती पर अलग करती है
मनुष्यता को!
बल्कि एक केन्द्र में रह
निभाते कर्तव्य
समय मर्यादा से हर क्षण
अनवरत असंख्य तारें।
मुझे क्षणिक चिंतन
को मजबूर करता है
उस ब्रह्मांड का वह एकांतिक क्षण
और
उन आकाश ओढ़कर सोये
जड़-चेतन का
जिसे नहीं पता हम जीवित है या मृत