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असंगत / महेन्द्र भटनागर
Kavita Kosh से
निर्जन जंगल में
खिलते-झरते फूलों का,
शूलों की शय्या पर
मूक विकल घायल फूलों का
हार्दिक स्वागत !
रंग - बिरंगे रस - वर्र्षी
रक्तिम फूलों का
उल्लास - भरा / उत्साह - भरा
मन - भावन स्वागत !
ऊबड़ - खाबड़
बाधक
कंटकमय पथ पर
राहत देते फूलों का
अन्तरतम से हार्दिक स्वागत !
लेकिन; केवल
पग - पग चुभते शूलों का अनुभव,
दूर - दूर तक बजता
खड़खड़ कर्कश उनका रव
करता तन आहत,
मन आहत !
हे स्रष्टा !
एकांगी जीवन की रचना से
बचना !