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असुन्दर / अविनाश मिश्र
Kavita Kosh से
सुन्दर है तुम्हारा सम्प्रदाय
सुन्दर है तुम्हारी साम्प्रदायिकता
सुन्दर है तुम्हारा ध्वज
सुन्दर है तुम्हारी हिंसा
सुन्दर है तुम्हारा ईश्वर
सुन्दर है तुम्हारी घृणा
सुन्दर है तुम्हारा रंग
सुन्दर है तुम्हारी परम्परा
सुन्दर हो तुम और तुम्हारा राष्ट्र
पर तुम इसे बचाते क्यों नहीं ? !