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अस्तित्व / कर्मानंद आर्य
Kavita Kosh से
इतनी आग है
जला सकते हैं तुम्हारा बदन
इतनी ऊष्मा है
पिघला सकते हैं ठंडा लोहा
इतनी कुंठा है
फूंक सकते हैं तुम्हारा राजमहल
इतना जहर है
विष के कटोरे में तब्दील कर सकते हैं
तुम्हारी काया
हमने तो केवल प्यार से काम चलाया है
जाने कितने हथियार हैं
हमारी जेब में अभी
हमारी मुट्ठियों में
ज्वाला है
जिसका प्रयोग हम
‘दिया’ जलाने के लिए कर रहे हैं
हमने हाथ को हथियार नहीं बनाया है
अभी तक
पर अब हम सोच रहे हैं.....
दीमकों! तुम माफ़ करने योग्य नहीं हो
फिर भी जाने क्यों
अस्तित्व है अभी तुम्हारा
हमारी भरी पूरी दुनिया में