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अस्सी का काशी / उज्ज्वल भट्टाचार्य
Kavita Kosh से
आपको जब भी देखता हूं
बुश्शर्ट पहनकर
लाल सायकिल पर सवार
एक नौजवान
इतराता फिरता नज़र आता है
उमर तो बढ़ती गई
लेकिन वरिष्ठ होने का शऊर नहीं आया
मेरी बात मानो
आप जवान ही बने रहो
भले ही
आपको कसिया कहनेवालों की
तादाद घटती जा रही हो।
भदेस होने का बहाना करते हुए
मीठी-मीठी बातें करते होते हो
और मैं समझ जाता हूँ
यह सब झूठ है
जिन्हें धकेलकर
सच्चाई पीछे से झाँक रही है
और वह झाँकती रहेगी
मकसद आपका कुछ भी हुआ करे।