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अहद-ए-सज़ा / हबीब जालिब
Kavita Kosh से
ये एक अहद-ए-सज़ा है जज़ा की बात न कर
दुआ से हाथ उठा रख दवा की बात न कर
ख़ुदा के नाम पे ज़ालिम नहीं ये ज़ुल्म रवा
मुझे जो चाहे सज़ा दे ख़ुदा की बात न कर
हयात अब तो इन्हीं महबसों में गुज़रेगी
सितमगरों से कोई इल्तिजा की बात न कर
उन्ही के हाथ में पत्थर हैं जिन को प्यार किया
ये देख हश्र हमारा वफ़ा की बात न कर
अभी तो पाई है मैं ने रिहाई रहज़न से
भटक न जाऊँ मैं फिर रहनुमा की बात न कर
बुझा दिया है हवा ने हर एक दया का दिया
न ढूँड अहल-ए-करम को दया की बात न कर
नुज़ूल-ए-हब्स हुआ है फ़लक से ऐ 'जालिब'
घुटा घुटा ही सही दम घटा की बात न कर