भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अहमक / सुलोचना वर्मा
Kavita Kosh से
तमीज़ की कमीज़ के बटन का काज़ उधेरकर
औरों से शिकायतमंद है कि उन्हें सीना नही आता
लोगों की आदतपरस्ती के एहसास में ज़ुल्म ढा रहा है
और बयान दूसरों को, कि उन्हे जीना नही आता
दोस्ती की आड़ में, जिंदगी की राह पर
पाप इतने किए हैं के अब गिना नही जाता
यूँ तो मशवरा बहुतों ने दिया है उसे, लेकिन
अहमक दिमाग़ को इल्म ठोकरों के बिना नही आता
एक अरसे से हज को रुखसत हुआ है
चला ही जा रहा है, पर मदीना नही आता