भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अहसासों को ऐसे चाला जाएगा / दीपक शर्मा 'दीप'
Kavita Kosh से
अहसासों को ऐसे चाला जाएगा
रफ़्ता-रफ़्ता शेर निकाला जाएगा
नश्शा-नश्शा ज़ुल्फ़ों की अँगड़ाई में
कैसे अपना होश सँभाला जाएगा
जाने कैसा ख्व़ाब अभी देखा मैं ने
चाबी होगी, उस में ताला जाएगा
अपने भाले से कह दे दुश्मन-जानी!
मुझमें, केवल मेरा भाला जाएगा
वक़्ते-फ़ुर्सत खाली गगरी को भी 'दीप'
बेजा दसियों बार खँगाला जाएगा