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अहेरी दिन / योगक्षेम / बृजनाथ श्रीवास्तव
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अहेरी दिन
न लौटें फिर
चलो कुछ मंत्र हम पढ़ लें
अभी कल तक
यहाँ दिन सोनपाँखी थे
रहे सँग में
कभी काका व काकी थे
अकेले अब
जियें कैसे
नई कुछ राह हम गढ़ लें
गिरे हम हैं
उठे हम हैं चढ़ानों पर
अभी पहुँचे
कहाँ हम उन ठिकानों पर
समय कहता
बढ़ो आगे
चलो गिरि श्रृंखला चढ़ लें
करें क्या हम
हमें आगे अभी जाना
अमावस में
उजाले की किरन लाना
जरूरत है
समय की अब
चलो गंतव्य तक बढ़ लें