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अहो भाय! / संजीव कुमार 'मुकेश'
Kavita Kosh से
अहो भाय!
साथे-साथ डेग तो बढ़ाबऽ
सौ आऊ पचास नञ् तऽ
एक पेड़ लगाबऽ
अहो भाय! साथे-साथ डेग तो बढ़ाबऽ।
अनमोल जीवन हे,
अनमोल सांस।
धरती होत हरियर तऽ
जीवन के आस।
पहले तनी बुझऽ, दूसरो के बुझाबऽ!
अहो भाय!
साथे-साथ डेग तो बढ़ाबऽ।
भोरे-सांझ मिलके चलऽ
करबई गलबात।
अहरी, अलंग ठमा,
रोपबई दूगो गाछ।
एसीओ ठंढ़ा हवा, जन के खिलाबऽ।
अहो भाय!
साथे-साथ डेग तो बढ़ाबऽ।
हरियर हई धरती ओजय,
लपसऽ हई बदरा।
बाद में पछतईहाऽ
मनइहऽ सुखल अदरा।
जन-जन के जिनगी, साथे मिल के बचाबऽ।
अहो भाय!
साथे-साथ डेग तो बढ़ाबऽ।
डेऊढ़ी की अंगना,
आऊ रोड के किनारे।
घरे-घर पेड़ बाँटऽ
दुआरे-दुआरे।
मिलतई गुठलियो के दाम, दूसरो के सीखाबऽ
अहो भाय!
साथे-साथ डेग तो बढ़ाबऽ।