भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अेक सौ अेक / प्रमोद कुमार शर्मा
Kavita Kosh से
दियासळाई बाळै जणै
मजूर रैवै बडै होस मांय
कै कठैई बीड़ी बाळतां थकां
गांव नीं बाळद्यै
उणी ढाळ :
सबद नैं रुखाळ
होस रै साथै उछाळ
कठैई नींद मांय गट्टी ना गाळद्यां!
बीड़ी पींता-पींता गांव ना बाळद्यां!