भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अेक सौ छयांळीस / प्रमोद कुमार शर्मा
Kavita Kosh से
तावड़ै नैं अडीकै
-गा
मां आपणी दिनुगै-दिनुगै गळी मांय
इण मारणजोगी ठंडी बरफ री रळी मांय
सोधै :
खुरां हेटै धरती रो ताप
सांस-सांस करै मंतर-जाप
भाखा यूं तपै
आपनैं कांई ठा
तावड़ै नैं अडीकै गा।