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आ सोच / प्रमोद कुमार शर्मा

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आ भाईड़ा
बैठ ......
घड़ी दो घड़ी बैठ!
बैठ‘र कर
म्हारै साथै दो च्यार बातां
जिण सूं कटै
ए काळी लाम्बी रातां !

बैठ !
अर सोच तूं ई म्हारै साथै सोच
कै आपणै घरां री भींत
किणी धन्ना सेठ री ओट
क्यूंकर बण ज्यावै
अर क्यूं दो भूखा
मिनखाचारो छोड़‘र
पै‘र लेवै धरम रा अंगरखा
अर तण ज्यावै आमी-सामी।

आ बैठ !
घड़ी दो घड़ी ई बैठ
पण बैठ तो सरी
बैठ
अर बैठ‘र देख
आपरै पगां रो भुगोल
अर बोल,
सांची-सांची बोल
कै आपणा पग
कणा पै‘र लेवै सड़क
जूतां री जिग्यां !
अर कणा वै लोग
आपां सूं काम लेवै
आपरै कुत्तां री जिग्यां !

आ बैठज्या
कद तांई भाजैलो
इण गोरखधन्धै लारै
आ बैठ
आपां दोनूं आपरी निगाह तेज करां
अर सगळा नै बतावां
कै आपणा दिमाग
हेल्यां री
बसांवळी तो नीं रूखाळै!