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आँख, काम के भाखन छेकै / चन्द्रप्रकाश जगप्रिय
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आँख, काम के भाखन छेकै,
रति देवोॅ के आसन छेकै ।
जे भी देखै बेसुध लागै
पनसोखा मन में छै जागै
राग सहारे झूमै-डोलै
सब विराग केॅ मन सें त्यागै
आँख तोरोॅ तेॅ प्रेमी-मन पर
इन्द्रासन के शासन छेकै ।
तोरोॅ आँख युगल दू खंजन
ताप-तपस्वी केरोॅ भंजन
मन के मलय हिलोर हृदय के
मरु पर मेघोॅ केरोॅ रंजन
कवि के काव्य के मुक्ति लेली
आँख तोरोॅ अरगासन छेकै ।