भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
आँख / अशोक शुभदर्शी
Kavita Kosh से
आँख मोरचा पर छै
संभव नै छै
आँखोॅ के बिना
खेलना कोय खेल
सभ्भे खेल आँखे के छेकै
युद्ध तेॅ जितले नै जावै सकै छै
आँखी केरोॅ अभाव में
कल जितलॅे छेलै
जोंन आँखी ने युद्ध
ऊ आय पुरानोॅ पड़ी गेलोॅ छै
अपना सनी केॅ
आबेॅ करना छै
फेरु सें ईजाद
नया आंख के
जीतै वास्तंे
युद्ध।