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आँख की तरह दिल / हेमन्त कुकरेती
Kavita Kosh से
उसने आँख की जगह
निकाल कर रख दिया दिल
रुकी हुई दुनिया चलने लगी
वे यादें थीं
गाढ़े ख़ून-सी बूंद-बूंद टपकती
उसके सीने को ढंकते
नदी थे उसके बाल
जिसमें नहा रही थीं
बत्तख सी उंगलियां
हाथों में था एक फूल दहकता
जिससे कपटी मौसम में वह
अपनी इच्छाओं को कह रही थी
दुनिया झुकी हुई थी
उसके सामने हाथ फैलाए
वह धर ही देती
उसके हाथ पर अपनी आंखें
जो दिल की तरह उछल रही थीं
हर डर पर ...