आँख जब लगी थी / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
19
मिले दो पल
आँख जब लगी थी
हुए ओझल
जब जगे तो देखा-
मिटी जीवन रेखा ।
20
द्वन्द्व घिरा था
जीवन का जंगल
मन विकल
तुमने मिल बाँटे
दु:ख के सब पल ।
21
कहाँ मिलेगा
यह अपनापन,
तुमने दिया,
जो जाने -अनजाने
खुशबू-भरा मन ।
22
नि:स्पृह मन
जब भी कुछ चाहे
ठोकर खाए
पूछे न यहाँ कोई
अपने या पराए ।
23
दूर है चन्दा
ढूँढ़ता है नभ में
अकेला तारा
कभी नज़र आए
तो कभी तरसाए ।
24
भरोसा किया
थे साथी सफ़र के
रहे डरके
बीच राह में छोड़ा
हर विश्वास तोड़ा ।
25
हे प्रभु मेरे
कुछ ऐसा कर दे !
दु:ख मीत के
सब चुनकर तू
मेरी झोली भरदे !
26
व्यथा की साँसें
कर देना शीतल
नयन खिलें
सब ताप मिटाके
करना आलिंगन ।
27
नई भोर-सा
तन हो सुरभित
पोर-पोर में
भरें गीतों के स्वर
खिलें प्रेम-अधर ।
-0-
(8 दिसम्बर-12-28 मई-13)
28
गुलाबी नभ
करतल किसी का
पढ़ा औचक
नाम था लिखा मेरा
अग-जग उजेरा।