भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आँख वा थी / ख़ालिद कर्रार

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आँख वा थी
होंट चुप थे
एक रिदा-ए-यख़ हवा ने ओढ़ ली थी
जबीं ख़ामोश
सज्दे बे-ज़बाँ थे
आगे इक काला समंदर
पीछे सुब्ह-ए-आतिशीं थी
और जब लम्हें रवाँ थे
हम कहाँ थे