आँखी में जे बसली छै / कस्तूरी झा 'कोकिल'
आँखी में जे बसली छै, हुनखा, भूलैबॅ मुश्किल,
प्यार में तड़पै वाला केॅ सुलैबें मुश्किल।
पैंसठ बरस ताँय जेॅ दिलॅ पर करलकै राज
ओकरा सभ्भेशक्ति लगाय केॅ डुलैबॅ मुश्किल।
एकाशीरेॅ सुहागिन, सुहागिन सब केॅ पूजनीया
महावर लाग लेॅ पैरोॅ से हुनखा छोड़ैबै मुश्किल।
अरथी सजैलेॅ गेलै, बैंड बाजा बजै लेॅ गेलौॅ
लुटैलेॅगेलैं पैसा, फूल, मेवा, मुरही, केला गिनैबॅ मुश्किल।
जेन्हेॅ बेटा, पोताँ नाँती, दामादें, कंधा देलकैॅ
आँसू रेॅ बरसा रेॅ थम्हेबेॅ मुश्किल।
राम नाम सत्य है केॅ नारा सें गुंजलै गगन,
आबाल, वृद्ध वनिता केॅ वापस घुरैबॅ मुश्किल।
चिता रचैलेॅगेलै घी सें धधकैलेॅ गेलेॅ।
तनीं टा बचलै जेॅ, ओकरा गंगा में बहैबेॅ मुश्किल।
जहाँ सें अयली रहथिन वहीं में विलीन होलखिन?
ममता केॅ मूरती रेॅ ऋण चुकैबेॅ मुश्किल।
27/03/15 अपराह्न 12.35 बजे