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आँखें / लक्ष्मी खन्ना सुमन
Kavita Kosh से
जरा हठीली, ज़रा चुलबुली बतियातीं आँखें
बच्चों की कितनी सुंदर है मुस्काती आँखें
जो ये करती काम निराला, कोई न कर पाए
दृश्य सुहाने कई तरह के दिखलातीं आँखें
हरे-भरें मैदां में अच्छे खेल खिलाती हैं
चित्र सजीले रंग-बिरंगे बनवातीं आँखें
जीवन में आगे बढ़ने की दिखलाती राहें
कई तरह की कई किताबें पड़वाती आँखें
दुःख तकलीफ़ें भी जब आती हैं इस जीवन में
रो-रो साथ निभाने आँसू बरसातीं आँखें
दिन-भर करके काम थके लोगों का मनभावन
मीठी-मीठी नींद निराली सुलवातीं आँखें
जीवन के झिलमिल चित्रों के रंगों में बसकर
'सुमन' सरीखे स्वप्न सुहाने दिखलातीं आँखें