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आँखों का आकर्षण / रामनरेश त्रिपाठी
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अपने दिन रात हुए उनके
क्षण ही भर में छवि देखि यहाँ।
सुलगी अनुराग की आग वहाँ
जल से भरपूर तड़ाग जहाँ॥
किससे कहिए अपनी सुधि को
मन है न यहाँ तन है न वहाँ।
अब आँख नहीं लगती पल भी
जब आँख लगी तब नींद कहाँ॥