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आँगन / होर्खे लुइस बोर्खेस / धर्मवीर भारती

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शाम होते-होते
आँगन के आलोक रंग मुरझा जाते हैं
पूनम के चान्द की विराट स्वच्छता, थिर, परिचित
आसमानों पर जादू नहीं बिखेरती
आसमान में बादल घिर आए हैं
दुश्चिन्ताएँ कहती हैं कि किसी देवदूत का अवसान हो गया है !

आँगन आकाश का, स्वर्ग का सन्देशवाही है —
आँगन एक खिड़की है, जिसमें से
ईश्वर आत्माओं की खोज-ख़बर रखता है —
आँगन एक ढलुआँ रास्ता है
जिसमें से आकाश, घर के अन्दर ढुलक आता है
चुपचाप —
शाश्वतता सितारों के चौराहों पर इन्तज़ार करती है !
चिर-परिचित दरवाज़ों, नीची गर्म छतों और
शीतल हौजों के बीच
एक संगिनी के प्रगाढ़ स्नेह की छाया में
ज़िन्दगी कितनी प्यारी लगती है ।