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आँच / भगवत रावत

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आँच सिर्फ़ आँच होती है

न कोई दहकती भट्टी

न कोई लपट

न कोई जलता हुआ जंगल


किसी अलाव की सी आँच की रोशनी में

चेहरे

दिन की रोशनी से भी ज़्यादा

पहचाने जाते हैं