भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आँसुओं को बवाल समझा गया /वीरेन्द्र खरे 'अकेला'

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आँसुओं को बवाल समझा गया
कब यहाँ दिल का हाल समझा गया

अपने लोगों की थीं करामातें
जिनको दुश्मन की चाल समझा गया

वो ख़फ़ा हैं कि घूसखोरी को
कैसे फोकट का माल समझा गया

हम जो सम्हले तो उँगलियाँ उट्ठीं
गिर पड़े तो कमाल समझा गया

साध ली फिर जवाब पर चुप्पी
कैसे समझें सवाल समझा गया

काम आए ये फ़ालतू काग़ज़
मेरी पॉकिट में माल समझा गया

तेरे बिन दिन सदी से गुज़रे हैं
लम्हे लम्हे को साल समझा गया