भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
आँसुओं में नहाए हुए हैं / चेतन दुबे 'अनिल'
Kavita Kosh से
आँसुओं में नहाए हुए हैं।
फिर भी पलकें बिछाए हुए हैं।
शूल से डरता सारा जमाना -
फूल से चोट खाए हुए हैं।
किस तरह भूल मैं उसको जाऊँ-
प्यार बचपन का पाए हुए हैं।
वे भले नीड़ मेरा उजाड़ें-
हम तो दिल में बसाए हुए हैं।
होंठ कैसे सिलूँ यह बता दो-
गीत अधरों पे आए हुए हैं ।
झोपड़ी में करेंगे बसेरा-
महल सपनों के ढाए हुए हैं ।