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आँसुओं से रात का दामन अगर भीगा तो क्या / शैलेश ज़ैदी

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आँसुओं से रात का दामन अगर भीगा तो क्या।
किसने चिंता की मेरी मैं फूटकर रोया तो क्या॥

कोई भी ऐसा न था अपना समझता जो मुझे।
ज़िन्दगी के मोड़ पर मैं रह गया तनहा तो क्या॥

सच कहीं होता है ऐसी कोशिशों से दाग़दार?
जल के सूरज पर किसी नादान ने थूका तो क्या॥

कुरसियों के साथ है लिपटा हुआ लोगों का प्यार।
कुरसियों के बीच है इन्सान नाकारा तो क्या॥

जब समझने की घड़ी आयी तो आँखें फेर लीं।
अब किसी ने भी अगर शैलेश को समझा तो क्या॥