आँसू बो कर गीत उगाना ओ! मेरी दीवानी कविते / शैलेन्द्र सिंह दूहन
आँसू बो कर गीत उगाना ओ! मेरी दीवानी कविते,
मूक-दबों की हूक सुनाना ओ! मेरी दीवानी कविते।
री! पाटे कुर्ते ढोंग बने हैं भाषण की थेकड़ियों से,
वे शीश महल के ठंडे कमरे हँसते हैं झोंपड़ियों पे,
है पेट भरा तो नींद चढ़ी सब हिम्मत वाली लहरों को
सच कहते तुम मत हकलाना ओ! मेरी दीवानी कविते।
आँसू बो कर गीत उगाना ओ! मेरी दीवानी कविते।
है सम्बन्धों की दहलीजों पर लाश टँगी आदर्शों की,
झूठ-मूठ की चमक-दमक से आँख मिची गत वर्षों की।
अब दोपहरी भी गहन तमी का ओढ़ कफन है चीख रही।
तेज हवा में दीप जलाना ओ! मेरी दीवानी कविते।
आँसू बो कर गीत उगाना ओ! मेरी दीवानी कविते।
है कर्तव्यों की फिकर नहीं पर लत सब को अधिकारों की,
बोखल बौराई कलियाँ भी अब चीज हुई बाजारों की।
मेल कराती मधुशाला जब अधरों को छू ठिठुक गयी
ऐसे में क्या पीना-पाना ओ! मेरी दीवानी कविते?
आँसू बो कर गीत उगाना ओ! मेरी दीवानी कविते।
सब दीवारें मीठे सपनों की दिन-दिन भुर-भुर टूट रही।
ड्योढी की झूठी बदनामी कर गलियाँ घर को लूट रही,
चूलहे-चौके औसारे सब कैद हुए इक कमरे में
दालानों का हाल बताना ओ! मेरी दीवानी कविते।
आँसू बो कर गीत उगाना ओ! मेरी दीवानी कविते।
उन अहसासों की सरगम के सब सुर गुम-सुम से लगते हैं,
उस पूनम वाले चंदा को भी टूटे तारे ठगते हैं।
निज धर्म भूल कर दूध सुबह का भेट चढ़ा अँधियारों की
तुम सूरज का सिर सहलाना ओ! मेरी दीवानी कविते।
आँसू बो कर गीत उगाना ओ! मेरी दीवानी कविते।