भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आंकस रै बीं बीज नै / मोहम्मद सद्दीक

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मझ दोपारे में
किलकिलातै
तावड़ियै स्यूं
तातै तवै सी तपती सड़कां पर
सिकतो/सिसकतो
भुळसीजतो/बिलखतो
उघाड़ो सरीर
पगां-उभाणों
भागतो-भटकतो
मिनखाचारो
ठौड़-ठौड़ टूट्योड़ो
मिनख-जमारो
थोप्योड़ी थोथी जूण रै
इण पार स्यूं उण पार
सड़क रै निचलै पासै स्यूं
ऊपर नै आंण री धार
नीची धूण
पोची जूण रो धणी
धराय आपरी
कंवळी-कुंवारी कांधी पर
जूवो जूण री
नसड़ी रेड़तो
हांफतो हेरतो
पसीनै रै बैवते बा‘ळां में
डूबता चार पोर बारनै
निकळयोड़ी जीभ स्यूं
टपकती राळां हाळो मूंढो ले‘र
रवाना होग्यो।
माथै ऊपर लादै ज्यूं
लद्योड़ा लोग
नित नूवों ऊगतो
अणतो बोझ लेर
चढणो सामी छाती
करड़ै चढ़ाव पर
इण जीव नै
हांकणियां रै हाथां में
होवै रेसमी रास
नाथ नै नचावती
लाम्बी-आली कामड़ी
कुठौड़ मारण नै होवै
आंरै कन्नै ठोकरां
कामड़ी री करड़ी मार
खावतो-खावतो
रास रा लग्गो-लग
लागता झटकां स्यूं
छीजतै चिरीजतै
नाक स्यूं बैंवतो लोई
सींचतो रैवै
आंकस रै बीं बीज नै
बी दिन तांई
जद होय घणो रिसाणो
रीस नै रसाय
मांय लै चूलै हाळी
आकरी आंच नै जीवती राख
रूखाळसी आपरो आपो
देखतां-देखतां
सगळी सांकळां नै तोड़
पूगसी सागी ठौड़
जठै- ना छींजै ना चिरीजै
ई‘रो नाक
रास रै अणतै झटकां स्यूं
जठै-कामड़ी रो कारोबार
कफना रा दफना दियो होसी