भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
आंख में भी पाणी हो / राजेश कुमार व्यास
Kavita Kosh से
दादी कनै
एक कठोती ही
उण रै मांय पाणी लेय‘र
बा
न्हावती
न्हाण रै बाद
बच्यौड़े पाणी सूं कपड़ा धोवती।
पाणी
फेरूं भी
बच जावतौ
दादी
घर आळा ने
सूंप देवती बो पाणी
ओ कैवते-
‘मसोता कर लो
ई पाणी सूं...’
दादी रो पाणी
कदै नीं खूटतो
तद
आंख में भी पाणी हो
सब दादी रो कैवणों मानता।